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29 July, 2013

"हो गया है साफ अम्बर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से
एक गीत
"हो गया है साफ अम्बर"
ढल गई बरसात अब तो, हो गया है साफ अम्बर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।

उमस ने सुख-चैन छीना,
हो गया दुश्वार जीना,
आ रहा फिर से पसीना, तन-बदन पर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।

हरितिमा होती सुनहरी जा रही.
महक खेतों से सुगन्धित आ रही,
धान के बिरुओं ने पहने आज झूमर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।

ढल रहा गर्मी का यौवन जानते सब,
कुछ दिनों में सर्द मौसम आयेगा जब,
फिर निकल आयेंगे स्वेटर और मफलर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।

3 comments:

  1. हरितिमा होती सुनहरी जा रही.
    महक खेतों से सुगन्धित आ रही,
    धान के बिरुओं ने पहने आज झूमर।

    वाह, शास्त्रीजी मौसम के बदलते रूप का सुंदर सौम्य वर्णन ।

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  2. ऋतु परिवर्तन मौसम की करवट का भाव प्रदर्शित करती बढ़िया रचना। शुक्रिया आपकी स्नेहपूर्ण टिप्पणियों का।

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  3. उमस ने सुख-चैन छीना,
    हो गया दुश्वार जीना,
    आ रहा फिर से पसीना, तन-बदन पर।
    खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।

    बढ़िया रचना, शस्त्री जी !

    ReplyDelete

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