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29 January, 2014

"ऐसा पागलपन अच्छा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
 
"ऐसा पागलपन अच्छा है"
रचना बाँच सुवासित मन हो
पागलपन में भोलापन हो
ऐसा पागलपन अच्छा है!! 

घर जैसा ही बना भवन हो

महका-चहका हुआ वतन हो
ऐसा अपनापन अच्छा है!! 

प्यारा सा अपना आँगन हो! 
निर्भय खेल रहा बचपन हो! 
ऐसा बालकपन अच्छा है!!

निर्मल सारा नील-गगन हो

खुशियाँ बरसाता साव हो
ऐसा ही सावन अच्छा है!! 

खिला हुआ अपना उपवन हो

प्यार बाँटता हुआ सुमन हो
ऐसा ही तो मन अच्छा है!!

मस्ती में लहराता वन हो!

हरा-भरा सुन्दर कानन हो!

ऐसा ही कानन अच्छा है!!

ऐसे
 बगिया-बाग-चमन हों! 

जिसमें आम-नीम-जामुन हों! 
ऐसा ही उपवन अच्छा है!!

छाया चारों ओर अमन हो! 

शब्दों से सज्जित आनन हो! 
ऐसा जन-गण-मन अच्छा है!! 
ऐसा पागलपन अच्छा है!!

1 comment:

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